मेरे लिए बार-बार मर कर भी जीवित होता रहा , खुद की ख़्वाहिशो को दफना कर वो शख्स...........................................//- पता नहीं क्यूं थक जाती हूं , कितनी कोशिशें करती हूं ना , पर अंत में ; कुछ भी सही नहीं कर पाती हूं . क्या मुझे तक़्लीफ़ नहीं होती ? क्या मुझे आराम करने का मन नहीं करता ? क्या मेरे जहन में हार मान लेने जैसे ख्याल नहीं आते ?