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मेरे लिए बार-बार मर कर भी जीवित होता रहा , खुद की

मेरे लिए बार-बार मर कर भी जीवित होता रहा , 
खुद की ख़्वाहिशो को दफना कर वो शख्स...........................................//- पता नहीं क्यूं थक जाती हूं ,
कितनी कोशिशें करती हूं ना ,
पर अंत में ;
कुछ भी सही नहीं कर पाती हूं .

क्या मुझे तक़्लीफ़ नहीं होती ?
क्या मुझे आराम करने का मन नहीं करता ?
क्या मेरे जहन में हार मान लेने जैसे ख्याल नहीं आते ?
मेरे लिए बार-बार मर कर भी जीवित होता रहा , 
खुद की ख़्वाहिशो को दफना कर वो शख्स...........................................//- पता नहीं क्यूं थक जाती हूं ,
कितनी कोशिशें करती हूं ना ,
पर अंत में ;
कुछ भी सही नहीं कर पाती हूं .

क्या मुझे तक़्लीफ़ नहीं होती ?
क्या मुझे आराम करने का मन नहीं करता ?
क्या मेरे जहन में हार मान लेने जैसे ख्याल नहीं आते ?
thvachl2514

thvachl ;

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