बेदाग चश्मे पर भी दाग सा दिख रहा है कुछ, जानी -समझी दुनिया मे भी अनजान सा हो रहा है कुछ। ऐ खुदा तूने ये क्या किया , फँसकर चल रही गरीबी की घड़ी भी रोक दी तूने। ऐ खुदा ये तूने क्या किया, गरीबों की गरीबी भी छीन ली तूने। जाएँ दरवाजे पे किसके तेरा तो बंद है, गाएँ दुख -दर्द किससे , बाकी तू खुद ही अक्लमंद है। ......बेदाग चश्मे पर भी दाग सा दिख रहा है कुछ, जानी -समझी दुनिया मे भी अनजान सा हो रहा है कुछ। -सौरभ ओझा। कोरोना के कहर में गरीबों का दर्द।