मौसम की तरह तुम सुकून मिली ना मुझको बेचैनी में जी रहा हूँ। जख्म से दिल भरा है, अश्कों को पी रहा हूँ। अंगारों से सजी है राहें इस मोहब्बत का यारों जख्म अपने दिल का लफ्जों से सी रहा हूँ। पागल हूँ उस नजर में, किम्मत नहीं है कुछ भी। जिनके लिए मैं यारा हमेशा बिकता रहा हूँ। अश्कों का कतारें हैं, पलकें है बंद फिर भी। कांटों से सजी पथ पे मुस्का के चल रहा हूँ। नजरें खोलकर ही मैंने अरमा एक था देखा। मेरा यही खता था और सजा भुगत रहा हूँ। तो जा ख़ुशी खुश रह, आ गम मुझे गम दे। हर गम सह ले दीपक यही लत लगा रहा हूँ।