सारे दर्द को चीर के सुन्न सा शरीर पर जाता है, बेबाक राहों पे अचानक ये पहरा जड़ जाता है, सब शून्य सा लगता है कि कहा जाए आनन फानन में, अक्सर ये दर्द मिल जाता है तनहाई के आलम में। दो राहे पर चुप मैं विचारों को अपने प्रबल करता हूं, किस राह पे में विचरू इस बात को सबल करता हूं, तुम्हे क्या पता मुझे क्या मिलेगा इस बात को जानन में, शांत मन सोचता हूं इन बातों को तनहाई के आलम में। जिंदादिल रहता हूं भरी महफ़िल को दिखाने के लिए, मैं रोज नया नाटक करता हूं साख बचाने के लिए, कैसे बयान करू बेरुखी गूंजती है लोगों के कानन में, सामने चित खुश रोष मिलता है तनहाई के आलम में। प्यार से नफ़रत सी होने लगी है अब जलती तमाशों में, खुशी छुप सी जाती है चुभती अलगाव के तमाशों में, अब तो लगती भलाई सी चुभती इन बातों के मानन में, मुझे दर्द भरी मुस्कुराहट मिलता है तनहाई के आलम में। तन्हाई के आलम में उदासी के मौसम में कविता का जन्म होता है। रचें अपनी कविता। Collab करें YQ Didi के साथ। #तन्हाईकेआलममें