तुम क्या जानो,कितना दर्द छुपा है मेरी इस खामोशी में कॉपी खोल कर देखना कभी मेरे दर्दों वाली, कितनी स्याही खराब कर रखी है तेरी यादों में तुम्हारी यादों में बीत जाता है वह टाइम जिसे लोग दिन कहा करते हैं पर खामोशी तो रात को इंतजार करती है बेवजह ही मुझ बीमार करती है दिखाया है मैंने डॉक्टर को, की खामोशी मुझसे बात करती है लिखा है उन्होंने दवा की जगह नाम तुम्हारा और साथ में यह भी लिखा है सुबह दोपहर शाम तुम क्या जानो कितना दर्द छुपा है मेरी आंखों में ना आंखों से छलकते हैं ना कागज पर उतरते हैं कुछ लफ़्ज ऐसे होते हैं जिसे बस हम और तुम समझते हैं तुम क्या जानो कितना दर्द छुपा है मेरी इन बातों में ना तुम बात समझते हो, ना तुम जज्बातों को महसूस करते हो ना तुम दिल में उतरते हो,ना खामोशी समझते हो Naresh panghal के कुछ एहसास ऐसे भी होते हैं जो बस कोरे पन्ने ही समझते हैं tum kya jano.. #poetry. #poems