रँग केसरी , रँग भगवा , दिन दिन मुझपर चढता जाए। ऐसा मोह लगे माटी का की और मोह कोई चढ ना पाये, पागलपन हो तो देशभक्ति का , पहचान मेरी हो भारत भूमि, मेरे तन मन मैं इस मिट्टी की, खुशबू इतनी मिल जाए। रँग केसरी, रँग भगवा.......... उठे ललकार हर मुख से , हर जन प्रताप हो जाए। फिर पावन हो पानी गंगा का , लक्ष्मीबाई सी हर नारी हो जाए। धनुष उठे फिर पृथ्वीराज सा, शिवाजी की तलवार लहाराए। भगत सिंह सा हो मतवाला , शेखर की फिर बन्दूक चल जाए। स्वपन अधुरा हो पुरा उनका, सिन्धू फिर भारत की हो जाए। लत लगे तो देश प्रेम की ,और हर युवक इसका आदी हो जाए। उठे प्रचंड जवाला हर सीने में, आग सुर्य की कम पड जाए। गुरु गोविंद सा बलिदानी हो , कटे शीश धड़ फिर लडता जाए। रँग केसरी, रँग भगवा, ........ चाणक्य सा गुरु मिले, चंद्रगुप्त हर बालक हो जाए। विक्रमादित्य जगे भितर सबके स्वपन अखंड भारत का सच हो जाए। दाग मिटे सब अब इस भूमि की काया से, राम राज्य फिर स्थापित हो जाए। प्राण दान की शक्ती जागे अब हर मन के भीतर, जुनन अशोका सा चढ जाए भुगत चुके जो वो अब ना भुगते , फैन सांपो का अब कुचला जाए। इतिहास लिखे अब फिर सर्वण आखर में , धवज केसरी प्योर भूमंडल पर लहराए। रँग केसरी , रँग भगवा......... #रँग केसरी