शेर हुए चटखारे से ग़ज़ल हुई नमकीन गीत हुए मधुशाला से कविता भावविहीन गहन मनन चिंतन नहीं श्रोता नव सब दीन हीने ओछे काव्य गढ़ अब के कवि प्रवीन ©अज्ञात #काव्य