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मजनू को लैला की, रांँझा को हीर की राधा को श्याम की

मजनू को लैला की, रांँझा को हीर की
राधा को श्याम की, सीता को राम की ।

धनुर्धर को तीर की, निर्वस्त्र को चीर की;
प्यासे को नीर की, सिंहासन को वीर की ।

आत्मा को शरीर की, मानव को ज़मीर की;
अग्नि को समीर की,अभागे को तक़दीर की ।

धरती को सूरज की, पंक को नीरज की;
चकोर को चांँद की, सिंदूर को मांँग की ।

माली को फूल की, वृक्ष को मूल की;
धोबी को धूप की, शिल्पकार को रूप की ।

वृद्ध को लाठी की, कुम्हार को माटी की;
दीए को बाती की, कवि को ख्याति  की ।

अंतरंग को शुद्धि की, समाज को समृद्धि की;
विद्यार्थी को बुद्धि की, संन्यासी को सिद्धि की ।

भूखे को पकवान की, सेना को जवान की ;
बांझ को संतान की, बेघर को मकान की।

अज्ञानी को ज्ञान की, डॉक्टर को सम्मान की;
देश को संविधान की, जीवन को विज्ञान की ।

संबंध को विश्वास की, रूह को एहसास की;
मिट्टी को उच्छवास की, भोगी को विलास की

अन्धकार को प्रकाश की, देश को विकास की;
घमंडी को विनाश की ,और विचारों को निकास की । #dr_naveen_prajapati
#शून्य_से_शून्य_तक
#कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है..

हे प्रियतम ! मुझे तुम्हारी जरूरत उतनी है, जितनी -

मजनू को लैला की, रांँझा को हीर की
राधा को श्याम की, सीता को राम की ।
मजनू को लैला की, रांँझा को हीर की
राधा को श्याम की, सीता को राम की ।

धनुर्धर को तीर की, निर्वस्त्र को चीर की;
प्यासे को नीर की, सिंहासन को वीर की ।

आत्मा को शरीर की, मानव को ज़मीर की;
अग्नि को समीर की,अभागे को तक़दीर की ।

धरती को सूरज की, पंक को नीरज की;
चकोर को चांँद की, सिंदूर को मांँग की ।

माली को फूल की, वृक्ष को मूल की;
धोबी को धूप की, शिल्पकार को रूप की ।

वृद्ध को लाठी की, कुम्हार को माटी की;
दीए को बाती की, कवि को ख्याति  की ।

अंतरंग को शुद्धि की, समाज को समृद्धि की;
विद्यार्थी को बुद्धि की, संन्यासी को सिद्धि की ।

भूखे को पकवान की, सेना को जवान की ;
बांझ को संतान की, बेघर को मकान की।

अज्ञानी को ज्ञान की, डॉक्टर को सम्मान की;
देश को संविधान की, जीवन को विज्ञान की ।

संबंध को विश्वास की, रूह को एहसास की;
मिट्टी को उच्छवास की, भोगी को विलास की

अन्धकार को प्रकाश की, देश को विकास की;
घमंडी को विनाश की ,और विचारों को निकास की । #dr_naveen_prajapati
#शून्य_से_शून्य_तक
#कवि_कुछ_भी_कलमबद्ध_कर_सकता_है..

हे प्रियतम ! मुझे तुम्हारी जरूरत उतनी है, जितनी -

मजनू को लैला की, रांँझा को हीर की
राधा को श्याम की, सीता को राम की ।