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जब लौटा वो कैद काट कर आजाद खगों को कर बैठा , वर्

जब लौटा  वो कैद काट कर
आजाद  खगों को कर बैठा ,
वर्षों से आवाद पिंजरों को 
घर से बाहर  लगा बैठा ,

पंख फैलाते उड़ चले पखैरू
ज्यों  नाप रहे हों  फैले नभ को ,
पा न सकेंगे  ओर  छोर  गगन का 
रहा जीवन पूर्ण समर्पित पिंजरों को ।। पिंजरे का असर
जब लौटा  वो कैद काट कर
आजाद  खगों को कर बैठा ,
वर्षों से आवाद पिंजरों को 
घर से बाहर  लगा बैठा ,

पंख फैलाते उड़ चले पखैरू
ज्यों  नाप रहे हों  फैले नभ को ,
पा न सकेंगे  ओर  छोर  गगन का 
रहा जीवन पूर्ण समर्पित पिंजरों को ।। पिंजरे का असर