जब लौटा वो कैद काट कर आजाद खगों को कर बैठा , वर्षों से आवाद पिंजरों को घर से बाहर लगा बैठा , पंख फैलाते उड़ चले पखैरू ज्यों नाप रहे हों फैले नभ को , पा न सकेंगे ओर छोर गगन का रहा जीवन पूर्ण समर्पित पिंजरों को ।। पिंजरे का असर