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राणा ये कैसी दुविधा आन पड़ी, जो तेरा मन है डोल रहा।

राणा ये कैसी दुविधा आन पड़ी, जो तेरा मन है डोल रहा।
तुझे अंदर ही अंदर ये बोल रहा।।
राणा अगर तुम सज्ज नहीं, अपने कर्तव्य का निर्वाह करने को।
तो मैं विवश हूं तुम्हारा वध करने को।।
खुद में तुझे वो टटोल रहा, और मन ही मन ये बोल रहा।
कर्म ही कर्तव्य है तेरा जो तुझे निभान है।।
तू फल कि चिंता क्यों करता है, जब वो विधाता के हाथों ही आना है।
राणा लिखना है तुझे और लिखते ही जाना है।।
धर्म के मार्ग पर चल कर तुझे कर्मयोगी हो जाना है।
पथभ्रष्ट समाज को धर्म से अवगत कराना है।।
लिखते रहो राणा लिखते रहो।
अपनी अंतिम सांस तक तुम्हें लिखते ही जाना है....):-
 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ 

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करना ही है| कर्मों के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है| अतः तुम निरन्तर कर्म के फल पर मनन मत करो और अकर्मण्य भी मत बनो|

हमें फल की चिंता ना करते हुए बस अपना कर्म करना चाहिए और अपने कर्म से भी विमुख नहीं होना चाहिए।

कुछ कठिन शब्द
राणा ये कैसी दुविधा आन पड़ी, जो तेरा मन है डोल रहा।
तुझे अंदर ही अंदर ये बोल रहा।।
राणा अगर तुम सज्ज नहीं, अपने कर्तव्य का निर्वाह करने को।
तो मैं विवश हूं तुम्हारा वध करने को।।
खुद में तुझे वो टटोल रहा, और मन ही मन ये बोल रहा।
कर्म ही कर्तव्य है तेरा जो तुझे निभान है।।
तू फल कि चिंता क्यों करता है, जब वो विधाता के हाथों ही आना है।
राणा लिखना है तुझे और लिखते ही जाना है।।
धर्म के मार्ग पर चल कर तुझे कर्मयोगी हो जाना है।
पथभ्रष्ट समाज को धर्म से अवगत कराना है।।
लिखते रहो राणा लिखते रहो।
अपनी अंतिम सांस तक तुम्हें लिखते ही जाना है....):-
 कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥ 

श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं: तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करना ही है| कर्मों के फल पर तुम्हारा अधिकार नहीं है| अतः तुम निरन्तर कर्म के फल पर मनन मत करो और अकर्मण्य भी मत बनो|

हमें फल की चिंता ना करते हुए बस अपना कर्म करना चाहिए और अपने कर्म से भी विमुख नहीं होना चाहिए।

कुछ कठिन शब्द