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सुबह से शाम तक । जमीन से आसमान तक। जो भेदभाव कर रह

सुबह से शाम तक ।
जमीन से आसमान तक।
जो भेदभाव कर रही है जिंदगी ।
मेरे हर मुकाम तक।
खुद को मैं बराबरी का हक दिलाता हूं ।
तेरे आंचल मे।
बीहड़ों की दोपहरी मे जैसे कोई छांव देखता हो।
दूर के आते बादल मे।
तुझे सोनार बना रखा हे। अपना।
अपना कम वजन भी महंगा किए जा रहा हूं।
तेरी बातों मे अपनी हर परेशानी गुम किए जा रहा हूं।
सारी की सारी जितनी भी बची है।
जिंदगी हल्की भारी।
यूं ही  गुजर जाए ।
तेरे आंचल मे।
तेरे आंचल मे।
😊😊😊

©Ankur Thainuan
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