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धीरे-धीरे वो हमें , नीचे और नीचे गिराने लगे। जितना

धीरे-धीरे वो हमें ,
नीचे और नीचे गिराने लगे।
जितना हमने उन्हें शिद्दत से चाहा,
उतना ही पीठ पर खंजर वो चलाने लगे।।

आईना भी अपना मुंह छुपाने लगा,
जख्म हमारे देखकर।
बयां भी तो करें कैसे,
थक चुका जख्मों पर निशां खेंचकर।।

अब भी नादान बने बैठे, 
अपने यकीन पर यकीन करके।
ख्वाब टूट गए सारे ना रहा कोई साथ,
रोते रहे अश्कों को हाथों में भर के।।

जिंदगी में किसी की बेवफाई,
फिर बार-बार याद करने लगे।
किसी को अपने दिल का नूर बनाकर,
हम थोड़ा पछताने लगे।।

धीरे-धीरे वो हमें,
नीचे और नीचे गिराने लगे......

©Yogendra Nath Yogi
  #Deere2#धीरे धीरे वो.....

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