जिंदगी के गुलिस्तान में, मुरझा गया हूंँ सूखे पत्तों की तरह, किसी ने शाखे ही काट डाली हमारी खुशी की, तो हमारे गुल भी कैसे खिल सकते हैं। चाँद सा रोशन था हमारा जहां भी, अमावस का ना पहरा था, सितारे भी हमारे बुलंद थे, टूटने का कोई इरादा ना था। इश्क़ के पहरेदार हम भी थे, करते थे उसके किरदार को सलाम, पता नहीं क्या वज़ह थी के उसने कभी, हमको इश्क़ का बादशाह समझा ही नहीं। किया था हमने हर मौसम को प्यार, बसंत को भी अपना माना पतझड़ को भी, पर मेरी जिंदगी में इश्क़ का गुल खिल सके, ऐसा मौसम मुझे कहीं ना मिला। -Nitesh Prajapati (Niharsh) ♥️ मुख्य प्रतियोगिता-1108 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें! 😊 ♥️ दो विजेता होंगे और दोनों विजेताओं की रचनाओं को रोज़ बुके (Rose Bouquet) उपहार स्वरूप दिया जाएगा। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।