#OpenPoetry ख़्वाबों की तासीर ! तेरे दीदार को तरसती मेरी ये खुमार से भरी दोनों निश्छल आँखें रोज रात एक नया ख्वाब बुन लेती है जिनकी तासीर मेरे होंठों पर चासनी सी धीरे-धीरे उतरती है फिर पूरी रात इश्क़ कतरा-कतरा कर मेरी रूह में धीरे-धीरे उतरता रहता है ! #ख्वाबों #की #तासीर