बादल की कहानी टिमटिमाते तारों के अम्बर तले । दोज़ख़ का संसार बसा रहा ।। यह संज्ञान किसी को न हो सका । इंसान होने का कितना दुख हो रहा ।। क्षण एक मंडराता बादल आया ।। घेर धरा चहुँ ओर दिशा से । अमृत रस उसने बरसाया ।। टप टप करता मेघ का पानी । अम्बर के सबसे उच्च शिखर से ।। अनन्त जल बरसाता है । ये बूंदों से अपने संगीत धुन सुनाता है ।। नरक रूपी इस धरती पर । इंसान करता है इंसानियत का तिरस्कार ।। राone@उल्फ़त-ए-ज़िन्दग़ी (भाग-1) बादल की कहानी