जो फैलाने चले हैं मुल्क़ में दहशत धमाकों से , वही छुपते फिरा करते हैं इक मुद्दत धमाकों से. न ख़बरों में उछाल आया, न बाज़ारों में सूनापन , न बिगड़ी मुल्क़ के माहौल की सेहत धमाकों से. वही हल्ला, वही चीखें, वही ग़ुस्सा, वही नफ़रत , हमें अब हो गई इस शोर की आदत, धमाकों से. ये दहशतग़र्द अब इस बात से आगाह हो जाएँ , कि अब आवाम की बढ़ने लगी हिम्मत धमाकों से. वज़ूद अपना जताने के लिए वहशी बने हैं जो, उन्हें हासिल नहीं होती कभी शोहरत धमाकों से.