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लेकर त्रिशूल और कमल हाथ में करती वृषभ सवारी । प्रथ

लेकर त्रिशूल और कमल हाथ में करती वृषभ सवारी ।
प्रथम रूप माँ गौरी का तुम, माता शैलपुत्री हमारी ।।

पुत्री रूप में पाकर तुमको धन्य हुए हैं पर्वतराज ।
लिया अवतार शैलपुत्री का,धन्य हुए भक्तों के भाग ।।

तुम ही सौम्य,तुम ही सुंदर,तुमसे ही है धरती सारी ।
दो वरदान बस इतना माता,सदा करूं मैं सेवा तुम्हारी ।। लेकर त्रिशूल और कमल हाथ में करती वृषभ सवारी ।
प्रथम रूप माँ गौरी का तुम, माता शैलपुत्री हमारी ।।

पुत्री रूप में पाकर तुमको धन्य हुए हैं पर्वतराज ।
लिया अवतार शैलपुत्री का,धन्य हुए भक्तों के भाग ।।

तुम ही सौम्य,तुम ही सुंदर,तुमसे ही है धरती सारी ।
दो वरदान बस इतना माता,सदा करूं मैं सेवा तुम्हारी ।।
लेकर त्रिशूल और कमल हाथ में करती वृषभ सवारी ।
प्रथम रूप माँ गौरी का तुम, माता शैलपुत्री हमारी ।।

पुत्री रूप में पाकर तुमको धन्य हुए हैं पर्वतराज ।
लिया अवतार शैलपुत्री का,धन्य हुए भक्तों के भाग ।।

तुम ही सौम्य,तुम ही सुंदर,तुमसे ही है धरती सारी ।
दो वरदान बस इतना माता,सदा करूं मैं सेवा तुम्हारी ।। लेकर त्रिशूल और कमल हाथ में करती वृषभ सवारी ।
प्रथम रूप माँ गौरी का तुम, माता शैलपुत्री हमारी ।।

पुत्री रूप में पाकर तुमको धन्य हुए हैं पर्वतराज ।
लिया अवतार शैलपुत्री का,धन्य हुए भक्तों के भाग ।।

तुम ही सौम्य,तुम ही सुंदर,तुमसे ही है धरती सारी ।
दो वरदान बस इतना माता,सदा करूं मैं सेवा तुम्हारी ।।