इस क़दर अकेलेपन ने तोड़ दिया मुझको, मैं वीराने से कहता रहा, मुझे तन्हा छोड़ दो। तो इसलिए रोशनी भी रोकर रुख़सत हुयी, मै अँधेरों से कहता रहा, मुझे जलता छोड़ दो। हुआ ना नसीब मुझे ठहराव एकपल का, मै मंज़िलों से कहता रहा, मुझे चलता छोड़ दो। ना यूँ ही साहब मैं अश्क़ों से तर-ब-तर हूँ, मैं आंखों से कहता रहा, इन्हें बहता छोड़ दो। छोटी सी कहानी का फ़िर अंत ना हुआ, मैं लोगों से कहता रहा, मुझे कहता छोड़ दो। क्यूँ मिले फ़िर निज़ात गम-ए-गुल से मुझे? मैं ज़ख्मों से कहता रहा, मुझे सहता छोड़ दो। इस क़दर अकेलेपन ने तोड़ दिया मुझको, मैं वीराने से कहता रहा, मुझे तन्हा छोड़ दो। तो इसलिए रोशनी भी रोकर रुख़सत हुयी, मै अँधेरों से कहता रहा, मुझे जलता छोड़ दो। हुआ ना नसीब मुझे ठहराव एकपल का, मै मंज़िलों से कहता रहा, मुझे चलता छोड़ दो।