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यूँ ही कभी-कभी फुर्सद की बेला पड़ जाता हूँ जब मैं

यूँ ही कभी-कभी फुर्सद की बेला
पड़ जाता हूँ जब मैं बेहद अकेला,
करता हूँ तब में गुफ़्तगू खुदसे और 
दो-चार सिकायतें भी कर लेता हूँ रबसे! 

                       यूँ ही कभी-कभी जीने के क्रम में
                       पड़ जाता हूँ जब मैं दुविधा में भ्रम में,
                       बन्द कर दो नैनों को फिर
                       याद करता हूँ मैं तुझे-
                       छोड़ जाती हैं उलझनें तब 
                       और खुशी छू लेती है मुझे! 

यूँ ही कभी कभी तुम भी शायद
याद कर लेती हो थोड़ा सा मुझे-
तभी इन निरंतर हिचकियों में मेरे 
आ-आकर बहुत सताती हो मुझे, 
तभी इन रोजमर्रे के ख्वाबों में मेरे 
आ-आकर बड़ा तड़पाती हो मुझे! यूँ ही कभी-कभी फुर्सद की बेला
पड़ जाता हूँ जब मैं बेहद अकेला,
करता हूँ तब में गुफ़्तगू खुदसे और 
दो-चार सिकायतें भी कर लेता हूँ रबसे! 

यूँ ही कभी-कभी जीने के क्रम में
पड़ जाता हूँ जब मैं दुविधा में भ्रम में,
बन्द कर दो नैनों को फिर
यूँ ही कभी-कभी फुर्सद की बेला
पड़ जाता हूँ जब मैं बेहद अकेला,
करता हूँ तब में गुफ़्तगू खुदसे और 
दो-चार सिकायतें भी कर लेता हूँ रबसे! 

                       यूँ ही कभी-कभी जीने के क्रम में
                       पड़ जाता हूँ जब मैं दुविधा में भ्रम में,
                       बन्द कर दो नैनों को फिर
                       याद करता हूँ मैं तुझे-
                       छोड़ जाती हैं उलझनें तब 
                       और खुशी छू लेती है मुझे! 

यूँ ही कभी कभी तुम भी शायद
याद कर लेती हो थोड़ा सा मुझे-
तभी इन निरंतर हिचकियों में मेरे 
आ-आकर बहुत सताती हो मुझे, 
तभी इन रोजमर्रे के ख्वाबों में मेरे 
आ-आकर बड़ा तड़पाती हो मुझे! यूँ ही कभी-कभी फुर्सद की बेला
पड़ जाता हूँ जब मैं बेहद अकेला,
करता हूँ तब में गुफ़्तगू खुदसे और 
दो-चार सिकायतें भी कर लेता हूँ रबसे! 

यूँ ही कभी-कभी जीने के क्रम में
पड़ जाता हूँ जब मैं दुविधा में भ्रम में,
बन्द कर दो नैनों को फिर
darshanblon1957

Darshan Blon

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