यूँ ही कभी-कभी फुर्सद की बेला पड़ जाता हूँ जब मैं बेहद अकेला, करता हूँ तब में गुफ़्तगू खुदसे और दो-चार सिकायतें भी कर लेता हूँ रबसे! यूँ ही कभी-कभी जीने के क्रम में पड़ जाता हूँ जब मैं दुविधा में भ्रम में, बन्द कर दो नैनों को फिर याद करता हूँ मैं तुझे- छोड़ जाती हैं उलझनें तब और खुशी छू लेती है मुझे! यूँ ही कभी कभी तुम भी शायद याद कर लेती हो थोड़ा सा मुझे- तभी इन निरंतर हिचकियों में मेरे आ-आकर बहुत सताती हो मुझे, तभी इन रोजमर्रे के ख्वाबों में मेरे आ-आकर बड़ा तड़पाती हो मुझे! यूँ ही कभी-कभी फुर्सद की बेला पड़ जाता हूँ जब मैं बेहद अकेला, करता हूँ तब में गुफ़्तगू खुदसे और दो-चार सिकायतें भी कर लेता हूँ रबसे! यूँ ही कभी-कभी जीने के क्रम में पड़ जाता हूँ जब मैं दुविधा में भ्रम में, बन्द कर दो नैनों को फिर