तुझे दूर से चाहना मंजूर है मुझे मेरी इस इबादत पर गुरूर है मुझे तुझे अपने लफ्जो में छुपा कर रखूगी अपनी शायरी में बसा कर रखूंगी चांद सा है तू तेरी चांदनी नहीं मैं खुद को जमीन बनाकर रखूंगी