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भाई-बहन आओ तुम्हें मैं अपने बचपन का किस्सा सुनाऊँ

भाई-बहन
आओ तुम्हें मैं अपने बचपन का किस्सा सुनाऊँ
भाई-बहन के रिश्ते की दास्तां सुनाऊं
वो लड़ते-झगड़ते हैं बेशुमार प्यार भी करते हैं
चांद और सूरज बनकर घर के आंगन को रौशन करते हैं
जताते नहीं कभी बोलकर वो की प्यार कितना करते हैं
सताने में जो माहिर हैं कभी मानते नहीं हैं
घर पर एक-दूसरे को न पाकर
जो पूरे घर को सर पर उठाते हैं
कहां गया वो कहां गई वो की जो रट लगाते हैं
सताकर जो एक - दूसरे को इतराते बहुत हैं
तकलीफ एक को जो हो तो रोता दूसरा बहुत है
मुश्किल जो पड़ जाए तो साथ खड़े होते हैं
बिना बताए एक दूसरे की हर बात समझते हैं
बिना जताए एक दूसरे का खयाल रखते हैं
दोनों मिलकर राखी ,भाईदूज की शोभा बढ़ाते हैं
यह रिश्ता है खट्टी-मीठी नोक झोंक का ताने सुनने-सुनाने का
यह किस्सा है शरारतों के पिटारों का
कही अनकही बातों का बचपन की मीठी यादों का
शालिनी कश्यप
30/11/22

©Shalini Kashyap
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