बैठकर कैंटीन में, पीछे की बेंच पर, चाय के प्याले टकराना याद आता है। कॉलेज के आखिरी दिन का, मुझे वो फ़साना याद आता है। तब न मोबाइल था हमारे पास, न ही कैमरा हुआ करता था। जब याद रखना हो किसी को, दिल में ही रखना पड़ता था। तब कॉलेज के पीछे, गली में उससे, स्लैम बुक भरवाना याद आता है। कॉलेज के आखिरी दिन का, मुझे वो फ़साना याद आता है। ''अब चलती हूँ'', उससे सुनकर, नम हो गईं थीं मेरी आँखें, पता नहीं क्यों, गले लगाने को, तड़प उठीं थीं मेरी बाँहें। "फ़िर मिलेंगे" कह पलटकर, उसका मुस्कुराना याद आता है। कॉलेज के आखिरी दिन का, मुझे वो फ़साना याद आता है।। कॉलेज का फ़साना #vks #yqbaba #yqdidi #yqhindi #yqgudiya #yqmuzaffarpur