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सच सच बताना तुम। अगर अरमान हमारे जो भड़के थे, कही

सच सच बताना तुम।

अगर अरमान हमारे जो भड़के थे,
कहीं ना कहीं तुम भी तो बहके थे।
पकड़ा  था जो हाथ मैने कसकर,
आहिस्ता आहिस्ता तुम भी तो जकड़े थे।
फैली थी, जो खुशबू उन्माद की,
उसमे बराबर तुम भी तो महके थे।
फिर अदालत में क्यों सारे गुनाह,
मेरे नाम हुआ?
तुम बेचारी बनकर सुर्खिया बनी,
मैं बदनाम सरे आम हुआ।
सच सच बताना तुम।

©Manibhushan Abhishek
  #Fake 
#Feminism