ये आसमा, नीला ये अंबर धरती समंदर न जाने कहां मुझको ले जाए, मैं जाने ना दूंगा ऐसे ही कश्ती को मंजिल की तरफ में बढ़ाता चलूं, आसमा को छूती यह लहरें बताती है समंदर भी आया है जिद पे न जाने ले जाए मुझको कहां, मैंने भी ठाना है कश्ती बढ़ाना है मंजिल की राहों पर इसे ले जाना है || ©Shubham patel ये आसमा, नीला ये अंबर धरती समंदर न जाने कहां मुझको ले जाए