आचार्य विद्या सागर जैसे एक समंदर समा ले एक गागर में तुम संत तुम ही भगवंत तुम परमात्मा तुम ही पुण्यात्मा तुम तपस्वी तुम ही नमस्वी तुम कल युग के तारक तुम ही पापों के संहारक तुम संत रूप लिए तीर्थेशवर तुम ही तीन लोक के भुवनेश्वर तुम चमकते तेज धूप से संस्कार है,जिसमे तपते कभी घनी छांव सी देते शीतल पेड़ जिसमे फलते शिष्य तुम्हारे जिस राह गुजरते उस राह को देव भी तरसते आपके चरणों की जो रज पाते आपके ही होकर सारी संपदा तज जाते वो जीव जाने कितने कर्म काटते जो आपके दर्शन कर पुण्य पाते हर शब्द छोटा आपके गुड़ गान के आगे जो स्वयं जाने कितने ग्रंथ लिख जाते चेहरे पर नूर सूरज सा चमकता चांदनी रात दर्शन पा चांद भी दमकता विद्यासागर की पावन तपस्वी धरा पे आओ अपना मस्तक टिका दे। पापकर्म तज पुण्यकर्म करके जीवन अपना स्वर्णमय बना ले।। शिल्पी जैन सतना ©chahat तुम ही संत तुम ही भगवंत