212 212 212 212 दर्द अपना जो मुझको सुनाए नहीं। याद में यकबयक आप आए नहीं। था अंधेरा यहां मेरे घर में मगर। दीप दे तो दिए पर जलाए नहीं। गर कहो तुम सनम जान दे दूं तुम्हें। पर सनम तो जनाजे में आए नहीं। ये मोहब्बत जो है ज़ख़्म मुझको दिया। याद रखिए युगों तक भुलाए नहीं। आप आओ तो देखूं खुदी को छिपा। फट चुके चिलमनों को सिलाए नहीं। आप आए तो मयकद हुआ मैं मगर। आप कहते हो मुझको पिलाए नहीं। है महंगी मोहब्बत सुनो सब बशर। तुम कहो कब दिया है किराए नहीं। मर्ज दीपक कहो अब करूं ही तो क्या! यार अपने मुझे कब सताए नहीं । ©®दीपक झा रुद्रा #गजलें #हिंदी #कविता #सताए #reading