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कागज़ की कश्ती को भी था मिलता किनारा नादान मद-मस्त

 कागज़ की कश्ती को भी था मिलता किनारा
नादान मद-मस्त मन, फिरता था कहीं आवारा 
जाने क्या पाने की होड़ में खो गयी मुस्कुराहट कहीं
मासूम, कोमल सा था, अपना बचपन कितना प्यारा

©Tulika Srivastava MANU
  #bachpan 

#kavita #Hindi