"अब तो बस मैं जा रहा हूँ"a diary of kota student!!(full poem im caption) वो उठतीं उँगलियाँ, कुटिल मुस्कान, चीरते शब्द और व्यंगात्मक कटाक्ष, अब तो नहीं मैं झेल पा रहा हूँ। गिरा हुआ, बेबस सा मैं, मुँह लटकाये, सामने की दीवार को ताक रहा हूँ, सोच रहा हूँ, शुन्य में जैसे झाँक रहा हूँ। इस दुनिया से नहीं मैं अब मेल खा रहा हूँ,