कितने ही सपनो को भवरों मे देखकर नदी के किनारे भी विलाप करने लगे, कलियाँ भी मुरझाई सूख गये फूल सब बाग और बहारें भी विलाप करने लगे, मन मे विरक्ति वाला भाव उठने लगा तो नयन हमारे भी विलाप करने लगे, कविता के सूरज को अस्त हुआ देखकर चाँद और सितारे भी विलाप करने लगे। #gopaldasneeraj