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छुटता ही नहीं हो जिसे आज़ार-ए-मोहब्बत मायूस हूँ मै

छुटता ही नहीं हो जिसे आज़ार-ए-मोहब्बत
मायूस हूँ मैं भी कि हूँ बीमार-ए-मोहब्बत

इम्काँ नहीं जीते-जी हो इस क़ैद से आज़ाद
मर जाए तभी छूटे गिरफ़्तार-ए-मोहब्बत

हर जिंस के ख़्वाहाँ मिले बाज़ार-ए-जहाँ में
लेकिन न मिला कोई ख़रीदार-ए-मोहब्बत

हर नक़्श-ए-क़दम पर तिरे सर बेचे हैं आशिक़
टुक सैर तो कर आज तू बाज़ार-ए-मोहब्बत

#मीर तक़ी मीर

©साहिर उव़ैस sahir uvaish
  #Chhavi