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गुमशुम खड़ी थी वो...आज उन्हीं राहों पे। फिर उन्हीं

गुमशुम खड़ी थी वो...आज उन्हीं राहों पे। फिर उन्हीं राहों पे।
Gumsum# 
गुमशुम खड़ी थी वो, आज उन्हीं राहों पे।
थोड़ी शर्मा गई, जो नजर मिलाई उसने मेरी निगाहों से।
कभी साथ चला करते थे,जिन राहों पे हम,
हाथों में हाथ डाले,कदम से कदम।
गुमशुम खड़ी थी वो...!
न मिलने की चाहत, न खुशी थी कोई।
गुमशुम खड़ी थी वो...आज उन्हीं राहों पे। फिर उन्हीं राहों पे।
Gumsum# 
गुमशुम खड़ी थी वो, आज उन्हीं राहों पे।
थोड़ी शर्मा गई, जो नजर मिलाई उसने मेरी निगाहों से।
कभी साथ चला करते थे,जिन राहों पे हम,
हाथों में हाथ डाले,कदम से कदम।
गुमशुम खड़ी थी वो...!
न मिलने की चाहत, न खुशी थी कोई।
diwang9628863327834

Diwan G

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