#ख़ुद_शनासी या, ये धुआं हूँ? जो शक्ल ओ सूरत के दायरों से निकल कर धीरे धीरे, हवाओं का पोशीदा लिबास ओढ़ने लगा है जहाँ मैं ख़ुद आप से ही नज़रबंद हूँ या फिर, ये राख? जो इक ज़रा सी फूंक के बरक्स भी ठहर नहीं पाता और होकर रेज़ा-रेज़ा बेमान्वियत की फ़ज़ा मे बिखर जाता है... © gulam #ख़ुद_शनासी © gulam