कोरा कागज़ , हाथ मे कलम। भावनाओं का भँवर , लिखने को उत्तेजित मन।। अजीब सा कोलाहल , भाषा का विचार। शब्दों का जनजाल , असमंजस मे हम।। लिखुँ कुछ नया , या पुराने को ही जारी रखूँ। एक अजीब सी उलझन मे हूँ , कि कहानि कैसे पूरी करूँ।। कमल की कोमलता कहूँ , या कलम मे अश्क भर दूँ। लिख दूँ फूलों की महक , या काँटों की सच्चाई बयां कर दूँ।। मन मे हैं हजारों ख्यालात , मगर शब्दों को भी कितना भर लूँ। रोक लूँ खुद को यहीं , या हजारों पन्ने गढ दूँ।। शब्दों को खूब पिरो लिया पन्नों मे , बात को भी चलो खत्म करूँ । पर उलझन तो अब भी वहीं है , कि कहानि कैसे पूरी करूँ।। - नेहा वशिष्ठ कहानि कैसे पूरी करूँ।।