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और कहा... अगर मरहम बना सको खुद को तो मेरी

और कहा...

अगर  मरहम  बना  सको  खुद को
तो   मेरी   जानिब   बढ़ाना   कदम,
मेरी कुर्बत का अंज़ाम बुरा है दोस्त
बेहिसाब  ज़ख्मों का  ज़ख़ीरा हूँ मैं!

©सुशील यादव "सांँझ"
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