एक दिन मैं भी राख बनूंगा ००००००००००००००००० एक दिन मैं भी राख बनूंगा , हवा में उड़ूंगा। साथ छोड़ कर अपनो का , दर्द किसे कहुंगा। नया घर होगा , शमशान शहर होगा। अपनो से बिछड़ कर , जीवन जहर होगा। सज कर कंधों पर जाउंगा , वापस नहीं आऊंगा। आंखों में आंसू भरकर , दर्द किसे सुनाऊंगा। ना रिश्ता ना नाता, साथ होगा एक विधाता। जो कर्म किया है धरती पर , वहां खुलेगा खाता। ना धन ना दौलत , रहुंगा सून्य के बदौलत। कर्मों का हिसाब नगद होगा , नहीं मिलेगी मोहलत। ना 56 का सीना , ना मंदिर ना मदीना। गम जितना भी होगा सीने में, अकेला पड़ेगा पीना। ना सूबह , ना शाम , नहीं कोई काम। मिट जाएगी पहचान , मिट जाएगा नाम। ना धूप ना बारिश, नहीं कोई ख्वाहिश। ना कोई अपना , ना कोई साजिश। ना गाड़ी ना घोड़ा , नहीं जीवन में रोड़ा। दु:ख होगा जरुर मन में , अफसोस भी थोड़ा -थोड़ा। अकेला रहुंगा , सब अकेला सहूंगा। एक दिन मैं भी राख बनुंगा , हवा में उड़ूंगा।। ०००००००००००००००००००००० प्रमोद मालाकार की कलम से ©pramod malakar #एक दिन मैं भी राख बनूंगा.....