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मैं बेख़बर था, साथ मिरे इक जमात थी.. ये रुह तो फ़न

मैं बेख़बर था, साथ मिरे इक जमात थी..
ये रुह तो फ़ना के बाद भी हयात थी..

ताउम्र भटकता रहा जिसकी फ़िराक़ में..
वो नफ़्स कोई और नहीं,मेरी जा़त थी..

वो जश्न मनाता रहा अपनों से जीतकर..
वो नासमझ न समझा ये उसकी ही मात थी..

होती है कहां सब पे मेहरबां ये ज़िन्दगी..
इक मौत ही उनके लिए राहे-निजात थी..

मसरूफ थे जब ख़ुदनुमाई में क‌ई चराग़..
कहीं आलमे-बेदारी में तारीक रात थी..

     #yqbhaijan #aliem #fanah #firaaq
मैं बेख़बर था, साथ मिरे इक जमात थी..
ये रुह तो फ़ना के बाद भी हयात थी..

ताउम्र भटकता रहा जिसकी फ़िराक़ में..
वो नफ़्स कोई और नहीं,मेरी जा़त थी..

वो जश्न मनाता रहा अपनों से जीतकर..
वो नासमझ न समझा ये उसकी ही मात थी..

होती है कहां सब पे मेहरबां ये ज़िन्दगी..
इक मौत ही उनके लिए राहे-निजात थी..

मसरूफ थे जब ख़ुदनुमाई में क‌ई चराग़..
कहीं आलमे-बेदारी में तारीक रात थी..

     #yqbhaijan #aliem #fanah #firaaq