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कहां जान पाते हैं अपनों में भी

कहां जान पाते हैं                     अपनों में भी अपना
सच में किसी को                      नज़र जब न आए
परतें ही परतें हैं                        गाठें फिर दिल की
हर आदमी के।                         कहां खोल पाए।
अनजाने डरों की                      रिश्तों में हैं छिपी 
है फेहरिस्त लंबी।                      जाने कितनी दीवारें
जो धीरे ही धीरे                         गिराना जो चाहे 
उसे जीत लेती।                         गिरा भी न पाए।
चेतना पर होता जो                    असुरक्षाओं की है
चिंता का कब्जा़                        एक लंबी कहानी
गहराता ही जाता                       सुनाते भी कैसे 
मन का अंधेरा।                          छवि है बचानी।
कितना एकांगिक 
एकाकी सा जीवन 
दिल खोलने में इतनी 
भारी है उलझन।

#जयन्ती #डियर_जिंदगी #डिप्रेशन
कहां जान पाते हैं                     अपनों में भी अपना
सच में किसी को                      नज़र जब न आए
परतें ही परतें हैं                        गाठें फिर दिल की
हर आदमी के।                         कहां खोल पाए।
अनजाने डरों की                      रिश्तों में हैं छिपी 
है फेहरिस्त लंबी।                      जाने कितनी दीवारें
जो धीरे ही धीरे                         गिराना जो चाहे 
उसे जीत लेती।                         गिरा भी न पाए।
चेतना पर होता जो                    असुरक्षाओं की है
चिंता का कब्जा़                        एक लंबी कहानी
गहराता ही जाता                       सुनाते भी कैसे 
मन का अंधेरा।                          छवि है बचानी।
कितना एकांगिक 
एकाकी सा जीवन 
दिल खोलने में इतनी 
भारी है उलझन।

#जयन्ती #डियर_जिंदगी #डिप्रेशन