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एक सप्ताह आजादी की कहकर देशभक्ति का नारा देते हैं,

एक सप्ताह आजादी की कहकर देशभक्ति का नारा देते हैं,
और पूरे साल उसी आजादी और देश को सरे आम बदनाम करते हैं,

स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर उनकी बातें बड़ी बड़ी करते हैं,
अगले ही दिन उनके मुख और विचारों पर अपने कर्मो से कालिख लगाते हैं,

हर बंदिशों को तोड़कर जो मातृ ए वतन खातिर जान न्योछावर करते हैं,
उन्हीं पर अपनी गंदी सोच के इल्जाम शान से लगाते हैं,

मिलाकर तीन रंगो को जो तिरंगा हम शान से बनाते हैं,
उसी को धर्म और जात पात में बेख़ौफ़ हम बांटते हैं,

भूल जाते हैं लड़ी कितनी लड़ाइयां और बलिदान कितने हुए यहां,
तभी तो इस आजादी की कीमत को दो कोढ़ी के लायक भी न समझते हैं,

जिंदगी की हर शाम को आजादी से बिताने खातिर समय की कैद रहते हैं,
पर देश की आजादी को संप्रदाय दरिंदगी में कैद हम रखते हैं,

जिस देश से पहचान मिली क्यूं उसी को बदनाम जग में करते हैं,
भूल जाते हैं वो अस्तित्व माटी का जिससे हम सब बनते हैं,

गिर जाता हर परिंदा जब घोंसला उसे न संभालता है,
अपने ही घोंसले को सरेआम बदनाम कर फलक को छू भी न पाता है

sunshine #AazaadMann 
#soch
#AazadiApneSochKi 
#aazadi_ki_khatir 
#realityofsociety 

#aazadi
एक सप्ताह आजादी की कहकर देशभक्ति का नारा देते हैं,
और पूरे साल उसी आजादी और देश को सरे आम बदनाम करते हैं,

स्वतंत्रता सेनानियों को याद कर उनकी बातें बड़ी बड़ी करते हैं,
अगले ही दिन उनके मुख और विचारों पर अपने कर्मो से कालिख लगाते हैं,

हर बंदिशों को तोड़कर जो मातृ ए वतन खातिर जान न्योछावर करते हैं,
उन्हीं पर अपनी गंदी सोच के इल्जाम शान से लगाते हैं,

मिलाकर तीन रंगो को जो तिरंगा हम शान से बनाते हैं,
उसी को धर्म और जात पात में बेख़ौफ़ हम बांटते हैं,

भूल जाते हैं लड़ी कितनी लड़ाइयां और बलिदान कितने हुए यहां,
तभी तो इस आजादी की कीमत को दो कोढ़ी के लायक भी न समझते हैं,

जिंदगी की हर शाम को आजादी से बिताने खातिर समय की कैद रहते हैं,
पर देश की आजादी को संप्रदाय दरिंदगी में कैद हम रखते हैं,

जिस देश से पहचान मिली क्यूं उसी को बदनाम जग में करते हैं,
भूल जाते हैं वो अस्तित्व माटी का जिससे हम सब बनते हैं,

गिर जाता हर परिंदा जब घोंसला उसे न संभालता है,
अपने ही घोंसले को सरेआम बदनाम कर फलक को छू भी न पाता है

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