मैं क्या लिखूं! मेरी आदत है सोचने की बहुत। हर एक लफ़्ज़ को छूकरके देखने की बहुत। गुज़रते वक़्त के लम्हों को थामने की बहुत.. बस एक पल में इक सदी को समेटने की बहुत! हज़ारों ख़्वाब सजाकर के तोड़ने की बहुत.. मेरी आदत है ज़िंदगी से उलझने की बहुत! मैं मंज़िलों से बेनियाज़, बस सफ़र में हूं.. मैं क्या करूं! मेरी आदत है चलने फिरने की बहुत। किसी डगर पे सुबह-ओ-शाम ठहरने की बहुत.. फ़िराक़-ओ-वस्ल में शहर-शहर भटकने की बहुत! मेरी आदत है हादसों से गुज़रने की बहुत.. उन हादसों से बार-बार उबरने की बहुत। ठोकरें खाकर, गिर-गिर के संभलने की बहुत.. मैं क्या कहूं! मेरी आदत है यूं जीने की बहुत। #yqaliem #yqbhaijan #kyalikhun #adat #zindgi बेनियाज़ - Independent, Self-sufficient फ़िराक़-ओ-वस्ल - separation and union.