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कहीं भी जाने की जरुरत नहीं उस राही को जिसे रहबर मि

कहीं भी जाने की जरुरत नहीं उस राही को जिसे रहबर मिल गया, 
भटकनों से बच गया  वो इस कद्र मंजिल से हुआ रूबरू
जिस खुशनसीब को जिंदगी में मुर्शिद कामिल मिल गया। 
खुद से वाकिफ हुआ जो वो खुदा से हुआ वासिल
इस भवसागर में नाखुदा सतगुरु जिसे हासिल हो गया । 
अब खौफ क्या डूबने का मुझे भंवर या समुंदर में, 
पतवार भी तू कश्ती भी तू तेरी बेखुदी में मुझे साहिल मिल गया। 
ख्वाब में भी न था जिस जहाँ का सहल होना मुझे
अपनी रहमत से मेरे महबूब तूने ऐसा मेरा मुकद्दर लिख दिया। 
सर को झुकाऊँ कहाँ किस तरफ करुँ सिजदा तुझे, 
तेरी मुहब्बत का गुल हर तरफ हर जगह खिल गया। 
अब क्या माँगू क्या अरदास करुँ कैसे फैलाऊँ झोली, 
बिन बोले बिन माँगे मेरा होता है पूरा ऐसा मुझे वो काबिल कर गया। 
शुक्र शुक्र है तेरा हरजाई साँस पुख्ता जिहन में इतवार तेरा, 
तेरी सोहबत तेरे सत्संग तगुरू सेवा से जीवन मेरा संवर गया। 

बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 
03.07.2020 रहबर
कहीं भी जाने की जरुरत नहीं उस राही को जिसे रहबर मिल गया, 
भटकनों से बच गया  वो इस कद्र मंजिल से हुआ रूबरू
जिस खुशनसीब को जिंदगी में मुर्शिद कामिल मिल गया। 
खुद से वाकिफ हुआ जो वो खुदा से हुआ वासिल
इस भवसागर में नाखुदा सतगुरु जिसे हासिल हो गया । 
अब खौफ क्या डूबने का मुझे भंवर या समुंदर में, 
पतवार भी तू कश्ती भी तू तेरी बेखुदी में मुझे साहिल मिल गया। 
ख्वाब में भी न था जिस जहाँ का सहल होना मुझे
अपनी रहमत से मेरे महबूब तूने ऐसा मेरा मुकद्दर लिख दिया। 
सर को झुकाऊँ कहाँ किस तरफ करुँ सिजदा तुझे, 
तेरी मुहब्बत का गुल हर तरफ हर जगह खिल गया। 
अब क्या माँगू क्या अरदास करुँ कैसे फैलाऊँ झोली, 
बिन बोले बिन माँगे मेरा होता है पूरा ऐसा मुझे वो काबिल कर गया। 
शुक्र शुक्र है तेरा हरजाई साँस पुख्ता जिहन में इतवार तेरा, 
तेरी सोहबत तेरे सत्संग तगुरू सेवा से जीवन मेरा संवर गया। 

बी डी शर्मा चण्डीगढ़ 
03.07.2020 रहबर
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