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गुलाब सी ज़िन्दगी काँटे जैसे लोग, लगा है सभी को मक

 गुलाब सी ज़िन्दगी काँटे जैसे लोग,
लगा है सभी को मक्कारी का भोग..!
नाराज़ हैं अपने ख़ुश हैं पराये,
न जाने कैसा ये ज़माने में रोग..!

©SHIVA KANT(Shayar)
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