पिता! हम इंसां चल रहे हैं बेहोश लकीरों पर हरसू झूठे दिलासों की धुआँधार बारिश राहें धुँधली हैं उदासी गहरी है भरोसा डाँवाडोल हमदर्दी की बेतरह चाहत मगर पिता चेहरे पर लुभावनी मुस्कान के लिए छोड़कर बेकली को मंज़िल की जानिब चलें होकर बेलौस, बेख़ौफ़ # पिता! होना होगा बेलौस, बेख़ौफ़