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कोह से गिरता दरिया हूं मैं। इक समंदर का हिस्सा हू

कोह से गिरता दरिया हूं मैं। 
इक समंदर का हिस्सा हूं मैं।

ज़ख्म बेशक रिसें धार बन
चोट खाकर भी बहता हूं मैं। 

सिंधु, सतलुज हूं मैं ही रावी
सभ्यता का किनारा हूं मैं। 

डूबकर ग़म ग़लत न करो
ज़िंदगी का मसीहा हूं मैं। 

प्यास सबकी बुझाता रहा
पर सराबों का धोखा हूं मैं। 

आइना बनके चमकूं सदा
बा वज़ू का भी ज़रिया हूं मैं। 

सूनी आंखों में बह जाऊं गर
दर्द-ए-दिल हलका करता हूं मैं। 

दश्त-ओ-सहरा मुझे ढूंढते
ज़ीस्त का एक कतरा हूं मैं। 

धूप मुझको सुखाएगी क्या
बादलों में पनपता हूं मैं। 

चश्म-ए-'मीरा' गिराए मुझे
पर नज़र से न उतरा हूं मैं। #कोह से गिरता दरिया हूं मैं 💦
कोह से गिरता दरिया हूं मैं। 
इक समंदर का हिस्सा हूं मैं।

ज़ख्म बेशक रिसें धार बन
चोट खाकर भी बहता हूं मैं। 

सिंधु, सतलुज हूं मैं ही रावी
सभ्यता का किनारा हूं मैं। 

डूबकर ग़म ग़लत न करो
ज़िंदगी का मसीहा हूं मैं। 

प्यास सबकी बुझाता रहा
पर सराबों का धोखा हूं मैं। 

आइना बनके चमकूं सदा
बा वज़ू का भी ज़रिया हूं मैं। 

सूनी आंखों में बह जाऊं गर
दर्द-ए-दिल हलका करता हूं मैं। 

दश्त-ओ-सहरा मुझे ढूंढते
ज़ीस्त का एक कतरा हूं मैं। 

धूप मुझको सुखाएगी क्या
बादलों में पनपता हूं मैं। 

चश्म-ए-'मीरा' गिराए मुझे
पर नज़र से न उतरा हूं मैं। #कोह से गिरता दरिया हूं मैं 💦