ग़ज़ल-ए-दर्द अब तलक जो हुआ वो भुला दीजिए, अब मुझे मौत की नींद सुला दीजिए। नीरस ज़िन्दगी जीने का है क्या फायदा, किसी और को नहीं ऐसी सजा दीजिए। जख्म दिया ठीक है मगर जाते-जाते जरा, दर्द का सहने का तरीका बता दीजिए। तूने जो दिया बेइंतेहा दर्द ओ सितम, गुज़ारिश है किसी गैर को ना दीजिए। मैं तो राहगीर हूं अदना अपनी राह का, ऐ रहबर! ज़रा कुछ राह दिखा दीजिए। #ग़ज़ल_ए_दर्द #नीरसज़िन्दगी #बेइंतेहा #राहगीर #अदना #रहबर