चलूं मैं तेरी जानिब,तू गुसारता क्यों है, बाद में नाम ले ले कर,पुकारता क्यों है। मुझे फना भी तूने किया,एक रोज "नीरज", मिटा के फिर से मुझे,...अब संवारता क्यों है।। -नीरज अकेला, तेरा जाना... दिल के अरमानों का लुट जाना...