“नारी के भिन्न रूप” (कविता) अनुशीर्षक में👇👇👇:// नारी तुम प्रकृति हो सृष्टि की जननी हो नारी तुम आस्था तुम ही प्रेम और विश्वास नारी तुम शक्ति की अवतार तुम ही जीवन की आधार नारी तुम धैर्य सहनशीलता का परिचायक तुम बिन ये संसार है नश्वर हर दर्द दुःख भुलाकर वो मुस्कुराती हर पथ को रोशन करने वाली वो शक्ति है नारी मांँ का रूप देवस्वरूपा ईश्वर भी उसके गोद में खेलना चाहा