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मुदित हुआ जिस घड़ी मेरा मन प्रेम का अंकुर फूटा है।

मुदित हुआ जिस घड़ी मेरा मन प्रेम का अंकुर फूटा है।
देख दुर्दशा फिर दुनिया की वही नवांकुर टूटा है।
प्रेम लिखूं या लिखूं विरह या कलम  रोक लूं अपनी?
 नित्य दीन लाचार मिलें जिन्हें अपनों नें ही लूटा है।।
@--- सरोज सिंह'सजल'

©Kavitri saroj singh
  #मुक्तक💝

मुक्तक💝 #कविता

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