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अंदर के रावण का अंत प्रतीक रूप में रावण दहन हर वर

अंदर के रावण का अंत

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

अभिमान क्रोध व निरंकुशता
होते पतन के द्वार हैं।
इन असाधारण रोगों का बस
एक प्रेम ही उपचार है।
निष्ठुरता रूपी उलूक बैठा
जो मन रूपी टहनी पे है।
उड़ा देना है उसे भी
ज्ञान दृष्टि पैनी से है।
कर्म निंदित हैं जहर से 
इनसे डरना चाहिए।
अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

वन्दनीया नारी है सो
सम्मान का भी भान हो।
हर नर में हर आभास हों
व दूर सब अज्ञान हो।
बन्धु भगिनी देवतुल्य से
ये सभी के विचार हों।
बृद्धजन पूजित रहें और
सत्य कटु स्वीकार हों।
सार्वभौम सौहार्द्र हो व
स्वार्थ तजना चाहिए।
अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

✍️अवधेश कनौजिया© अंदर के रावण का अंत

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

अभिमान क्रोध व निरंकुशता
अंदर के रावण का अंत

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

अभिमान क्रोध व निरंकुशता
होते पतन के द्वार हैं।
इन असाधारण रोगों का बस
एक प्रेम ही उपचार है।
निष्ठुरता रूपी उलूक बैठा
जो मन रूपी टहनी पे है।
उड़ा देना है उसे भी
ज्ञान दृष्टि पैनी से है।
कर्म निंदित हैं जहर से 
इनसे डरना चाहिए।
अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

वन्दनीया नारी है सो
सम्मान का भी भान हो।
हर नर में हर आभास हों
व दूर सब अज्ञान हो।
बन्धु भगिनी देवतुल्य से
ये सभी के विचार हों।
बृद्धजन पूजित रहें और
सत्य कटु स्वीकार हों।
सार्वभौम सौहार्द्र हो व
स्वार्थ तजना चाहिए।
अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

✍️अवधेश कनौजिया© अंदर के रावण का अंत

प्रतीक रूप में रावण दहन
हर वर्ष करना चाहिए।
पर अपने अंदर के रावण का
भी अंत करना चाहिए।।

अभिमान क्रोध व निरंकुशता