इक तो चिकना घड़ा ऊपर से उल्टा धरा न वो भर पावै न ही वो प्यास बुझाये । ऐसे ही प्राणी मन कागा तेरे का हाल है विषय विकारों में लिप्त आए और जावे। सत्संग नहीं है जाता इसे नाम नहीं है भाता गुरु शब्द कमाये बिना पार फिर कैसे पावै। गुरु आगे शीश धरो उल्टा घड़ा सीधा करो करो वही तुम जो तुमको सतगुरु समझाये गाँठ बाँध कर रख ले प्यारे ये पक्की बात सतलोक परते जन्म-मरण तेरा छुट जाये। बी डी शर्मा चण्डीगढ़ चिकना घड़ा