वक़्त के साथ मैं जंग लड़ती रही, तस्वीरें वही हैं रंगत बदलती रही। बूँद-बूँद ख्वाहिश बिखरते चले जा रहे, नए-नए शौक़ जन्म लेती ही जा रहे। जितना है उतने में मैं जीना सीख जाऊँ, ज़िंदगी तू भी तो थोड़ी मदद कर दे। तू जो रूठी है मुझसे, मैं भी टूटती जा रही! बिखर जाऊँ इससे पहले तू समेटती क्यूँ नहीं!! नमस्कार मित्रो, Social Manch की एक पहल *"लेखन प्रतियोगिता"* प्रारम्भ की जा रही हैं | ■आज का विषय - वक़्त के साथ #smवक्तकेसाथ प्रतियोगिता के लिए कुछ नियम व शर्ते - ●Social Manch द्वारा आपको रोज एक विषय दिया जाएगा।उस विषय पर आपको अपनी रचना लिखनी हैं ।